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मानसरोवर मार्ग: भारत ने किया उदघाटन, नेपाल ने किया विरोध

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दिल्ली। भारत और नेपाल के बीच तल्खियाँ बढ़ती नजर आ रही है। नेपाल ने मानसरोवर यात्रा के लिए बनाई गयी सड़क के उदघाटन के मौके पर इसका विरोध किया। और सड़क बनाने वाले क्षेत्र को बताया नेपाल का हिस्सा। वहीं नेपाल के द्वारा विरोध करने के कई मायने निकाले जा रहे है। कोई इसे यात्रा मे आने वाले पर्यटन व्यापार पर असर को मान रहा है। तो कोई नेपाल के चीन समर्थक दलों की चाल को मान रहा है। परंतु भारत ने नेपाल के विरोध को दो टूक जवाब देते हुये विरोध को खारिज कर दिया है। और भारत ने कहा है, कि जहां सड़क बनी है, वह क्षेत्र भारत का हिस्सा है। और भारत अपने हिस्से मे ही यात्रा को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण कर उदघाटन किया है। और अब इस सड़क मार्ग से यात्रा बेहद आसान और कम दिनों मे सम्पन्न होगी।

07 दिन मे पूरी होगी यात्रा 

  1. चीन अपनी कूटनीति से नेपाल को आगे कर रच रहा है षड्यंत्र
  2. चीनी समर्थक दलों को रास नहीं आया ड्रेगन तक भारत का पहुँचना
  3. रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने किया मानसरोवर यात्रा वाली सड़क का उदघाटन 

गर्बाधार-लिपुलेख सड़क मार्ग से यात्रा मात्र सात दिनों में ही पूरी हो जाएगी। दूरी भी नेपाल से कम और पैदल चलने से भी मुक्ति। परंतु भारत की पहुँच ड्रेगन तक हो जाने के कारण चीन समर्थक दलों को यह रास्ता रास नहीं आ रहा है। शुक्रवार को दिल्ली में जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह वीडियो कांफ्रेंसिंग से सड़क का उद्घाटन कर रहे थे तब चीन के साथ ही नेपाल की भी नजर इसपर लगी रही। नेपाली मीडिया ने इसे अलग ही रंग देने की कोशिश की। नेपाल ने कहा कि पूरा विश्व कोरोना की चपेट में है। नेपाल भी इससे निपटने की कोशिश कर रहा है। ऐसे मौके का फायदा उठाकर भारत ने चीन सीमा तक सड़क तैयार कर आवागमन के लिए खोल दी। लेकिन भारत ने इन सब बातों को खारिज करते हुये रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के हाथों से सड़क मार्ग का उदघाटन कर दिया गया।

मानसरोवर

काठमांडू से 13 दिन में पूरी होती है यात्रा

भारत से कैलास जाने के लिए वैसे तो दो अन्य मार्ग भी हैं। इनमें काठमांडू से जाने वाला सड़क मार्ग अब तक सरल और सस्ता माना जाता है। काठमांडू (नेपाल) से चलकर केरुंग और सागा (चीन) के रास्ते मानसरोवर झील और कैलास पर्वत की अधिकतर यात्रा बस या जीप से पूरी होती है।

  • पहले दिन काठमांडू में विश्राम।
  • दूसरे दिन पशुपतिनाथ के दर्शन के बाद यात्रा की महत्वपूर्ण जानकारी दी जाती है।
  • तीसरे दिन जत्था बस से शयाब्रुबेसी के लिए रवाना।
  • चौथे दिन नेपाल-चीन सीमा स्थित रसवागढ़ी के लिए रवानगी। यहां से केरुंग पहुंच रात्रि विश्राम।
  • पांचवां दिन केरुंग से सागा/डोंगबा। छठें दिन डोंगबा/सागा से मानसरोवर झील का सफर पूरा होता है।
  • सातवें दिन मानसरोवर झील से जत्था दारचेन शहर के लिए रवाना होता है। मानसरोवर झील की परिक्रमा कराते हुए बस यात्रियों को राक्षस ताल झील के समीप लाती है।
  • आठवें दिन दारचेन से यम द्वार, कैलाश परिक्रमा का पहला दिन शुरू होता है।
  • नौवें दिन धीरापुख से जुथुलपुख परिक्रमा, परिक्रमा का दूसरा दिन सुबह जल्दी उठ के स्वर्णिम कैलास (गोल्डन कैलास) के दर्शन होते हैं।
  • 10वें दिन जुथुलपुख से दारचेन, परिक्रमा का तीसरा दिन पूरा होता है।
  • 11वें दिन जत्था केरुंग के लिए रवाना होता है।
  • 12वें दिन चीनी सीमा को पार कर जत्था काठमांडू पहुंचता है।
  • 13वें दिन काठमांडू से जत्था भारत के लिए प्रस्थान करता है।

भारत का दो टूक जवाब- भारत में बनी सड़क

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ‘उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में हाल में उद्घाटन किया गया मार्गखंड पूरी तरह भारत के क्षेत्र में है। यह सड़क कैलास मानसरोवर यात्रा के तीर्थयात्रियों के उपयोग में आने वाले वर्तमान मार्ग पर ही है। वर्तमान परियोजना के अंतर्गत उसी रास्ते को तीर्थयात्रियों, स्थानीय लोगों और व्यापारियों की सुविधा के लिए आवागमन लायक बनाया गया है। भारत और नेपाल ने सभी सीमा मामलों से निपटने के लिए व्यवस्था स्थापित कर रखी है। भारत ने शनिवार को नेपाल की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि उत्तराखंड में धारचूला को लिपुलेख दर्रे से जोड़ते हुए जो नई सड़क (कैलास मानसरोवर लिंक) बनाई गई है, वह पूरी तरह उसके क्षेत्र में है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड में चीन की सीमा से सटे क्षेत्र में 17,000 फुट की ऊंचाई पर 80 किलोमीटर लंबे रणनीतिक मार्ग का उद्घाटन किया।

सुगौली संधि के विपरीत बताया

गर्बाधार-लिपुलेख सड़क मार्ग को सुगौली संधि के विपरीत बताया गया। दावा किया गया कि सड़क नेपाली जमीन पर बनाई गई है। सुगौली संधि के अनुसार काली (महाकाली) नदी के पूरब का पूरा भूभाग नेपाल का है। उनके अनुसार गुंजी, गर्बाधार, कुटिया नेपाल का हिस्सा हुआ। इस पर निर्माण किया जाना अतिक्रमण है।

कालापानी और सुस्ता विवाद का भी जिक्र

नेपाल में गर्बाधार-लिपुलेख सड़क के बहाने कालापानी और सुस्ता विवाद का भी जिक्र शुरू हो गया। सोशल मीडिया पर नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इन मुद्दों पर ट्रोल भी किया गया। हालांकि इस पर नेपाल सरकार ने अधिकृत रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

तो नाराजगी का असल कारण यह है

भारत-नेपाल मैत्री संघ के अध्यक्ष अनिल गुप्ता बताते हैं कि नेपाल की नाराजगी का अहम कारण उसके पर्यटन उद्योग को लगने वाली बड़ी चपत की आशंका है। असल में अभी तक कैलास मानसरोवर की यात्रा नेपाल के रास्ते आसान और सस्ती थी। इससे बड़ी मात्रा में देसी और विदेशी श्रद्धालु नेपाल का रुख करते हैं। इससे उसे बड़ी आमदनी होती है। अब गर्बाधार-लिपुलेख मार्ग से मानसरोवर की यात्रा बेहद सस्ती और जल्द हो सकेगी। ऐसे में नेपाल को डर सता रहा है कि उसका पर्यटन उद्योग चौपट हो जाएगा।

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