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हरितालिका तीज पूजन मुहूर्त एवं पूजन विधि

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हरितालिका तीज शुक्रवार, अगस्त 21, 2020 को
प्रातःकाल हरितालिका पूजा मुहूर्त – 05:49 ए एम से 08:22 ए एम
अवधि – 02 घण्टे 34 मिनट्स
प्रदोषकाल हरितालिका पूजा मुहूर्त – 06:37 पी एम से 08:52 पी एम
अवधि – 02 घण्टे 14 मिनट्स
तृतीया तिथि प्रारम्भ – अगस्त 21, 2020 को 02:13 ए एम बजे
तृतीया तिथि समाप्त – अगस्त 21, 2020 को 11:02 पी एम बजे

21 अगस्त, 2020 हरतालिका तीज

हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं भगवान शिव व माता पार्वती की रेत के द्वारा बनाई गई अस्थाई मूर्तियों को पूजती हैं। नारी के सौभाग्य की रक्षा करनेवाले इस व्रत को सौभाग्यवती स्त्रियां अपने अक्षय सौभाग्य और सुख की लालसा हेतु श्रद्धा, लगन और विश्वास के साथ मानती हैं। कुवांरी लड़कियां भी अपने मन के अनुरूप पति प्राप्त करने के लिए इस पवित्र पावन व्रत को श्रद्धा और निष्ठा पूर्वक करती है।
हरतालिका तीज की उत्पत्ति व इसके नाम का महत्त्व एक पौराणिक कथा में मिलता है। हरतालिका शब्द, हरत व आलिका से मिलकर बना है, जिसका अर्थ क्रमशः अपहरण व स्त्रीमित्र (सहेली) होता है। हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, पार्वतीजी की सहेलियां उनका अपहरण कर उन्हें घने जंगल में ले गई थीं। ताकि पार्वतीजी की इच्छा के विरुद्ध उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से न कर दें।
कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु में हरतालिका तीज को गौरी हब्बा के नाम से जाना जाता है व माता गौरी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में पूजा जाता है। गौरी हब्बा के दिन महिलाएं स्वर्ण गौरी व्रत रखती हैं व माता गौरी से सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं।
तीज का त्यौहार मुख्यतः उत्तर भारतीय महिलाओं द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। तीज मुख्यतः राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखण्ड में मनाई जाती है। सावन (श्रावण) और भादव (भाद्रपद) के मास में आने वाली तीन प्रमुख तीज निम्न हैं
हरियाली तीज
कजरी तीज
हरतालिका तीज
उपरोक्त तिजों के अतिरिक्त अन्य प्रमुख तीज निम्न है- आखा तीज, जिसे अक्षय तृतीया भी कहते है और गणगौर तृतीया (गणगौर) है।
हरतालिका पूजन सामग्री
फुलेरा विशेष प्रकार से फूलों से सजा होता .
गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत
केले का पत्ता
सभी प्रकार के फल एवं फूल पत्ते
बेल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, अकाँव का फूल, तुलसी, मंजरी.
जनैव, नाडा, वस्त्र,
माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामान जिसमे चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, मेहँदी आदि मान्यतानुसार एकत्र की जाती हैं।
घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, श्री फल, कलश.
पञ्चअमृत- घी, दही, शक्कर, दूध, शहद .

हरतालिका तीज पूजन विधि

हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से हाथों से बनाई जाती हैं .
फुलेरा बनाकर उसे सजाया जाता हैं. उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर पटा अथवा चौकी रखी जाती हैं. चौकी पर एक सातिया बनाकर उस पर थाल रखते हैं. उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं.
तीनो प्रतिमा को केले के पत्ते पर आसीत किया जाता हैं.
सर्वप्रथम कलश बनाया जाता हैं जिसमे एक लौटा अथवा घड़ा लेते हैं. उसके उपर श्रीफल रखते हैं. अथवा एक दीपक जलाकर रखते हैं. घड़े के मुंह पर लाल नाडा बाँधते हैं. घड़े पर सातिया बनाकर उस पर अक्षत चढ़ाया जाता हैं.
कलश का पूजन किया जाता हैं. सबसे पहले जल चढ़ाते हैं, नाडा बाँधते हैं. कुमकुम, हल्दी चावल चढ़ाते हैं फिर पुष्प चढ़ाते हैं.
कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं.
उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं.
उसके बाद माता गौरी की पूजा की जाती हैं. उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं.
इसके बाद हरतालिका की कथा पढ़ी जाती हैं.
फिर सभी मिलकर आरती की जाती हैं जिसमे सर्प्रथम गणेश जी कि आरती फिर शिव जी की आरती फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं.
पूजा के बाद भगवान् की परिक्रमा की जाती हैं.
रात भर जागकर पांच पूजा एवं आरती की जाती हैं.
सुबह आखरी पूजा के बाद माता गौरा को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं. उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं.
ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं. उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता हैं.
अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं.

हरतालिका तीज व्रत कथा

यह व्रत अच्छे पति की कामना से एवं पति की लम्बी उम्र के लिए किया जाता हैं.माता गौरा ने सती के बाद हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया. बचपन से ही पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में चाहती थी. जिसके लिए पार्वती जी ने कठोर तप किया उन्होंने कड़कती ठण्ड में पानी में खड़े रहकर, गर्मी में यज्ञ के सामने बैठकर यज्ञ किया. बारिश में जल में रहकर कठोर तपस्या की. बारह वर्षो तक निराहार पत्तो को खाकर पार्वती जी ने व्रत किया. उनकी इस निष्ठा से प्रभावित होकर भगवान् विष्णु ने हिमालय से पार्वती जी का हाथ विवाह हेतु माँगा. जिससे हिमालय बहुत प्रसन्न हुए और पार्वती को विवाह की बात बताई, जिससे पार्वती दुखी हो गई और अपनी व्यथा सखी से कही और जीवन त्याग देने की बात कहने लगी. जिस पर सखी ने कहा यह वक्त ऐसी सोच का नहीं हैं और सखी पार्वती को हर कर वन में ले गई. जहाँ पार्वती ने छिपकर तपस्या की. जहाँ पार्वती को शिव ने आशीवाद दिया और पति रूप में मिलने का वर दिया.
हिमालय ने बहुत खोजा पर पार्वती ना मिली. बहुत वक्त बाद जब पार्वती मिली तब हिमालय ने इस दुःख एवं तपस्या का कारण पूछा तब पार्वती ने अपने दिल की बात पिता से कही. इसके बाद पुत्री हठ के कारण पिता हिमालय ने पार्वती का विवाह शिव जी से तय किया.
इस प्रकार हरतालिक व्रत अवम पूजन प्रति वर्ष भादो की शुक्ल तृतीया को किया जाता हैं .हरतालिका तीज व्रत के नियमयह व्रत महिलाओं व कुवारी कन्याओ द्वारा अखंड सौभाग्य और योग्य वर प्राप्ति की कामना से रखा जाता है इसीलिए इस व्रत के दिन कुछ जरूरी नियम है यदि व्रती द्वारा इन नियमो के पालन के साथ इस व्रत को किया जाता है तो मान्यता है की व्रती को इस व्रत का फल अवष्य प्राप्त होता है.
शास्त्रों के अनुसार हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण ना करते हुए यह व्रत निर्जल रहकर करना चाहिए.और व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।हरतालिका तीज व्रत एक बार शुरू करने के बाद छोड़ना नहीं चाहिए प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए।शास्त्रों के अनुसार इस दिन महिलाओं को किसी पर भी क्रोध नहीं करना चाहिए।यदि संभव हो तो व्रत की रात जागरण कर भजन कीर्तन करने चाहिए.हरतालिका तीज के दिन दुसरो की बुराई या किसी बड़े बूढ़े का अपमान नहीं करना चाहिए.हरतालिका तीज पति के लिए रखा जाने वाला उपवास है इसीलिए इस दिन महिलाओं को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इस वह अपने पति के साथ किसी तरह का झगड़ा ना करें.हरतालिका तीज के दिन श्रृंगार को अधिक महत्व दिया जाता है, इसलिए इस दिन सोलह श्रृंगार अवश्य करना चाहिए बिना श्रृंगार के नहीं रहना चाहिए.मान्यता है कि विधि विधान से किये गये इस उपवास के प्रताप से अविवाहित कन्याओं को इच्छित वर एवं सुहागिन स्त्रियों को अटल सुहाग का वरदान मिलता

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