जिले में भंडारण के साथ उपार्जन केंद्रों पर समुचित व्यवस्था की जाए
जिले में भंडारण के साथ उपार्जन केंद्रों पर समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मंगलवार को खाद्य विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रदेश के समस्त कलेक्टरों एवं खाद्य विभाग एवं उपार्जन से जुड़े समस्त अधिकारियों की वर्चुअल बैठक आयोजित की गई। जिसमें सागर से कलेक्टर दीपक सिंह सहित विभिन्न अधिकारियों ने भाग लिया। इस अवसर पर खाद्य अधिकारी राजेंद्र बाइकर, नान से संजय सिंह, मार्कफ्ड से पी के परोहा , आर सी राय उपस्थित थे।

बैठक में मुख्य रूप से भंडारण व्यवस्था, पिछले वर्ष का उपार्जन, इस वर्ष उपार्जन की संभावना, जिले में मौजूद रिक्त क्षमता तथा भविष्य की संभावना, पीडीएस तथा एफसीआयी द्वारा लिया जाने वाला अनाज तथा उससे उपलब्ध भंडारण क्षमता, निर्माणाधीन गोडाउन इस प्रकार कुल वास्तविक क्षमता के आंकलन से संबंधित बिंदुओं पर चर्चा की गई।
कलेक्टर दीपक सिंह ने बताया कि भारतीय खाद्य निगम के सागर क्षेत्र की दरों की स्वीकृति नहीं होने के कारण एक लाख पचास हजार मीट्रिक टन का उठाव लंबित है। अतः भारतीय खाद्य निगम द्वारा उठाव करने पर स्थान रिक्त हो जाएगा। वर्तमान में एडहॉक दरें स्वीकृत होने से मात्र पाँच रैंक का ही उठाव किया जा रहा है जिससे मात्र 12,500 मीट्रिक टन का ही स्थान रिक्त हो पाएगा पाएगा।
उन्होंने बताया कि लगभग 90,000 मेट्रिक टन के पक्के कैप के निर्माण की अनुमति मिलने पर भूमि का चयन कर लिया गया है। लगभग 30, हजार मेट्रिक टन के लिए साइलो बैग जिले में अतिरिक्त रूप से लगाएँ जाने हेतु प्रयास किए जा रहे हैं।
पूर्व वर्ष की भाँति इस वर्ष भी अन्य जिलों में गेहूं को प्रेषित किये जाने का प्रयास किये जा रहे है। इसी प्रकार भारतीय खाद्य निगम को उपार्जन अवधि में ही अधिक से अधिक उठाव मोड-ए के तहत प्रेरित किया जाना भी उचित होगा।
उल्लेखनीय है कि रबी विपणन वर्ष 2021-22 का अनुमानित उपार्जन 5,50000 मीट्रिक टन है जिसमें गेहूं, चना, मसूर, सरसों आदि शामिल हैं। गोदाम की रिक्त क्षमता 1 लाख 61 हजार मीट्रिक टन है तथा निर्माणाधीन गोदाम क्षमता 75 हजार मीट्रिक टन है। इसी प्रकार साईलो की क्षमता 60 हजार मीट्रिक टन तथा ओपन कैप क्षमता 1 लाख 29 हजार मेट्रिक टन है इस प्रकार कुल क्षमता 4 लाख 25 हजार के करीब है।
उन्होंने बताया कि रहली, बीना, बंडा, जैसीनगर क्षेत्र में कुल 1 लाख 30 हजार मीट्रिक टन की क्षमता और विकसित की जा रही है।
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